परिचय – साखी (कबीर)
कक्षा 10 हिंदी स्पर्श भाग 2 का पहला पाठ “साखी” संत कबीर द्वारा रचित है। इसमें जीवन के गूढ़ सत्य, आत्मज्ञान, ईश्वर प्रेम, विनम्रता और सदाचार जैसे विषयों पर दोहों के माध्यम से सरल और प्रभावशाली संदेश दिए गए हैं। यह पाठ छात्रों को नैतिक शिक्षा के साथ-साथ भाषा सौंदर्य का भी अनुभव कराता है।

पाठ्यपुस्तक प्रश्न-अभ्यास (क) – उत्तर सहित
❓ प्रश्न 1: मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर: मीठी वाणी अहंकार को समाप्त करती है, जिससे तन को शीतलता और सुनने वालों को सुख की अनुभूति होती है।
❓ प्रश्न 2: दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है?
उत्तर: दीपक के प्रकाश से अंधकार समाप्त होता है। इसी प्रकार ज्ञान रूपी दीपक से मन का भ्रम और भय मिटता है।
❓ प्रश्न 3: ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर: ईश्वर को दिव्य चक्षु से ही देखा जा सकता है। भौतिक आँखों से नहीं, जब तक कृपा न हो।
❓ प्रश्न 4: संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन?
उत्तर: जो प्रभु प्राप्ति से विमुख होकर सांसारिक सुखों में डूबा है, वह सुखी प्रतीत होता है। जाग्रत व्यक्ति प्रभु वियोग में दुखी होता है।
❓ प्रश्न 5: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: कबीर ने निंदक को पास रखने का सुझाव दिया है, क्योंकि वह आत्मनिरीक्षण में सहायक होता है।
❓ प्रश्न 6: ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’ – कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: ईश्वर के नाम का एक अक्षर जान लेना ही सच्चे पंडित बनने के लिए पर्याप्त है।
❓ प्रश्न 7: कबीर की साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है, जिसमें जनभाषा, भावानुरूपता और चमत्कारिक शैली है।
प्रश्न-अभ्यास (ख) – भाव स्पष्ट कीजिए
🧠 बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
भाव: ईश्वर वियोग रूपी विरह सर्प की तरह शरीर में बसता है, जिस पर कोई मंत्र असर नहीं करता।
🧠 कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
भाव: जैसे हिरण अपनी नाभि में कस्तूरी होते हुए भी उसे जंगल में ढूँढता है, वैसे ही मनुष्य ईश्वर को बाहर खोजता है।
🧠 जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
भाव: जब तक अहंकार था, ईश्वर नहीं थे। अहंकार मिटते ही ईश्वर की प्राप्ति होती है।
🧠 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।
भाव: केवल ग्रंथ पढ़ने से कोई पंडित नहीं बनता, ईश्वर प्रेम ही सच्चा ज्ञान है।
भाषा अध्ययन – शब्दों के प्रचलित रूप
| मूल शब्द | प्रचलित रूप |
|---|---|
| जिवै | जीना |
| माँहि | में |
| देख्या | देखा |
| भुवंगम | भुजंग |
| नेड़ा | निकट |
| आँगणि | आँगन |
| साबण | साबुन |
| मुवा | मरा |
| पीव | प्रिय |
| जालौं | जलाऊँ |
| तास | उस |
योग्यता विस्तार और परियोजना कार्य
- मीठी वाणी और ईश्वर प्रेम पर दोहों का संकलन करें और चार्ट पर लिखें।
- कस्तूरी मृग के बारे में जानकारी एकत्र करें।
- कक्षा में कबीर अंत्याक्षरी का आयोजन करें।
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निष्कर्ष
कबीर की साखियाँ हमें सिखाती हैं कि सत्य, प्रेम, विनम्रता और आत्मज्ञान ही जीवन का सार हैं। यह पाठ छात्रों को न केवल परीक्षा में बल्कि जीवन में भी मार्गदर्शन देता है।
🧠 Convex Classes Jaipur में हम हर पाठ को सरल, अर्थपूर्ण और परीक्षा-केंद्रित रूप में प्रस्तुत करते हैं—ताकि छात्र केवल अंक ही नहीं, समझ भी पाएं।
Class 10th Sanskrit Chapter 8 Hindi Translation



