Class 10 Sanskrit Chapter 3 शिशुलालनम् | Hindi Translation
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Class 10 Sanskrit Chapter 3 शिशुलालनम् | Hindi Translation

by | Jul 15, 2025 | 0 comments

पाठ परिचय: शिशुलालनम्

यह पाठ प्रसिद्ध संस्कृत नाटक “कुण्डमाला” के पाँचवें अंक से लिया गया है, जिसकी रचना दिङ्नाग ने की थी। इसमें भगवान राम अपने पुत्रों लव और कुश से संवाद करते हैं, जिसमें पिता का वात्सल्य, शिशु–संकोच, और राजसी मर्यादा का सुंदर समन्वय है।

मूल संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद

1. सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ।

हिन्दी अनुवाद: राम सिंहासन पर बैठे हैं। तभी विदूषक द्वारा मार्ग दिखाए गए दो तपस्वी बालक—लव और कुश—प्रवेश करते हैं।

2. विदूषकः – इत इत आर्यौ!

हिन्दी: इधर से आइए, आर्यजन!

3. कुशलवौ – (रामम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य?

हिन्दी: (राम के पास जाकर प्रणाम करते हुए) क्या महाराज कुशल हैं?

4. रामः – युष्मद्दर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनः अतिथिजनसमुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः।

हिन्दी: तुम्हारे दर्शन से तो मैं कुशल अनुभव करता हूँ। क्या हम केवल कुशलता पूछने के पात्र हैं, अतिथि को गले लगाने योग्य नहीं? (गले लगाते हैं) अहा! यह स्पर्श तो हृदय को छू लेने वाला है।

5. उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।

हिन्दी: यह तो राजसिंहासन है, इस पर बैठना हमारे लिए उचित नहीं है।

6. रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मादङ्क–व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्। (अङ्कमुपवेशयति)

हिन्दी: सावधानी से बैठना चरित्र का हनन नहीं है। अतः मेरी गोद में बैठो, यही सिंहासन है। (उन्हें गोद में बैठाते हैं)

7. उभौ – (अनिच्छां नाटयतः) राजन्! अलमतिदाक्षिण्येन।

हिन्दी: (थोड़ा संकोच दिखाते हुए) महाराज! इतनी उदारता मत दिखाइए।

8. रामः – अलमतिशालीनतया।

हिन्दी: इतनी शालीनता भी ठीक नहीं।

9. श्लोकः

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधात् गुणमहतामपि लालनीय एव। व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् पशुपति–मस्तक–केतकच्छदत्वम्॥

हिन्दी अनुवाद: बालक अपनी आयु के कारण गुणवानों के लिए भी स्नेह के योग्य होता है। चन्द्रमा भी बालभाव के कारण शिवजी के मस्तक पर केतकी के पुष्प के समान शोभा प्राप्त करता है।

10. रामः – एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि—क्षत्रियकुल–पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोर्वंशस्य कर्ता?

हिन्दी: तुम्हारे सौंदर्य को देखकर उत्पन्न जिज्ञासा से पूछता हूँ—सूर्य और चन्द्र में से कौन तुम्हारे वंश का मूल है?

11. लवः – भगवन् सहस्रदीधितिः।

हिन्दी: प्रभु! हमारे वंश के मूल भगवान सूर्य हैं।

12. रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ?

हिन्दी: तुम दोनों हमारे समान कुल में कैसे उत्पन्न हुए?

13. विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम्?

हिन्दी: क्या दोनों का उत्तर एक ही है?

14. लवः – भ्रातरावावां सोदर्यौ।

हिन्दी: हम दोनों सगे भाई हैं।

15. रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।

हिन्दी: शरीर की बनावट एक जैसी है। आयु में भी कोई अंतर नहीं है।

16. लवः – आवां यमलौ।

हिन्दी: हम दोनों जुड़वाँ हैं।

17. रामः – सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम्?

हिन्दी: अब बात स्पष्ट हुई। तुम्हारा नाम क्या है?

18. लवः – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि।

हिन्दी: आर्य की वन्दना में मैं स्वयं को “लव” कहता हूँ।

19. कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।

हिन्दी: मैं भी स्वयं को “कुश” कहता हूँ।

20. रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः। किं नामधेयो भवतोर्गुरुः?

हिन्दी: अहा! कितना सुंदर और उच्च आचरण है। तुम्हारे गुरु का नाम क्या है?

21. लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।

हिन्दी: निश्चित ही हमारे गुरु भगवान वाल्मीकि हैं।

22. रामः – अहमत्र भवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।

हिन्दी: मैं तुम्हारे पिता का नाम जानना चाहता हूँ।

23. लवः – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।

हिन्दी: मैं उनके नाम को नहीं जानता। इस तपोवन में कोई उनका नाम नहीं लेता।

24. कुशः – जनाम्यहं तस्य नामधेयम्।

हिन्दी: मैं उनके नाम को जानता हूँ।

25. रामः – कथ्यताम्।

हिन्दी: बताओ।

26. कुशः – निरनुक्रोशो नाम।

हिन्दी: उनका नाम “निरनुक्रोश” (निर्दयी) है।

27. विदूषकः – निरनुक्रोश इति क एवं भणति?

हिन्दी: “निर्दयी” ऐसा कौन कहता है?

28. कुशः – अम्बा।

हिन्दी: हमारी माता।

29. विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?

हिन्दी: क्या वह क्रोधित होकर ऐसा कहती हैं या स्वभाव से?

30. कुशः – यदि अविनय देखती हैं तो कहती हैं—“निरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम्।”

हिन्दी: यदि वह हमारे बाल–स्वभाव से कोई उद्दण्डता देखती हैं तो कहती हैं—“निर्दयी के पुत्रों, चंचलता मत करो।”

31. रामः – (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्।

हिन्दी: (मन में) धिक्कार है मुझे! मेरे कारण वह तपस्विनी अपने पुत्रों को क्रोध से ऐसा कहती है।

Class 10th Free Notes

पाठ का सारांश

  • भाव पक्ष: शिशु–प्रेम, पिता–स्नेह, विनम्रता, और आत्म–संकोच
  • शिक्षा पक्ष: मर्यादा, शिष्टाचार, और पारिवारिक संबंधों की गरिमा
  • भाषा पक्ष: संस्कृत संवादों में कोमलता और गहराई का समावेश

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