Class 10 Sanskrit Chapter 4 Hindi Translation
class 10 sanskrit chapter 4 जननी तुल्यवत्सला | hindi translation
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class 10 sanskrit chapter 4 जननी तुल्यवत्सला | hindi translation

by | Jul 15, 2025 | 0 comments

पाठ परिचय: जननी तुल्यवत्सला

यह पाठ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत के वनपर्व से लिया गया है। इसमें गायों की माता सुरभि के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि माँ का वात्सल्य सभी संतानों के लिए समान होता है, लेकिन दुर्बल संतान के प्रति उसकी करुणा विशेष रूप से गहन होती है

मूल संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद

1. कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्।

हिन्दी: एक किसान दो बैलों से खेत की जुताई कर रहा था।

2. तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तः च आसीत्।

हिन्दी: उन बैलों में से एक शरीर से दुर्बल था और तेज़ी से चलने में असमर्थ था।

3. अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत।

हिन्दी: इसलिए किसान उस दुर्बल बैल को बार-बार हांकता और पीड़ित करता रहा।

4. सः ऋषभः हलम् ऊढ्वा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात।

हिन्दी: वह बैल हल को उठाकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर गया।

5. क्रुद्धः कृषीवलः तम् उत्थापयितुं बहुवारं यत्नम् अकरोत्।

हिन्दी: क्रोधित किसान ने उसे उठाने के लिए कई बार प्रयास किया।

6. तथापि वृषः न उत्थितः।

हिन्दी: फिर भी वह बैल नहीं उठा।

सुरभि का करुण भाव

7. भूमौ पतितं स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्याम् अश्रूणि आविरासन्।

हिन्दी: ज़मीन पर गिरे अपने पुत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि की आँखों से आँसू बहने लगे।

8. सुरभेः इमाम् अवस्थाम् दृष्ट्वा सुराधिपः ताम् अपृच्छत् – “अयि शुभे! किम् एवं रोदिषि? उच्यताम्।”

हिन्दी: सुरभि की इस अवस्था को देखकर देवताओं के राजा इन्द्र ने पूछा – “हे शुभा! तुम क्यों रो रही हो? बताओ।”

सुरभि का उत्तर

9. सा – “विनिपातः न वः कश्चित् दृश्यते त्रिदशाधिप! अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!”

हिन्दी: सुरभि बोली – “हे देवताओं के राजा! हमारा कोई विनाश नहीं हुआ है। मैं तो अपने पुत्र के दुःख से दुखी हूँ, इसलिए रो रही हूँ।”

10. “भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीनः इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति। इतरम् इव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?”

हिन्दी: “हे इन्द्र! अपने पुत्र की दीनता देखकर मैं रो रही हूँ। वह दुर्बल है, यह जानते हुए भी किसान उसे बार-बार पीड़ित करता है। वह कठिनाई से भार उठाता है। अन्य बैल की तरह जुए को वह नहीं ढो सकता। क्या आप यह नहीं देख रहे?”

इन्द्र का प्रश्न

11. “भद्रे! नूनम्। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?”

हिन्दी: “हे शुभा! निश्चित ही। हज़ारों पुत्रों के होते हुए भी तुम्हारा ऐसा वात्सल्य केवल इसी में क्यों?”

सुरभि का भावपूर्ण उत्तर

12. “यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे। दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्य अभ्यधिका कृपा।”

हिन्दी: “यदि मेरे हज़ार पुत्र हैं, तो वे सभी मेरे लिए समान हैं। लेकिन हे इन्द्र! दुर्बल पुत्र के प्रति मेरी कृपा स्वाभाविक रूप से अधिक होती है।”

13. “बहून्यपत्यानि मे सन्ति इति सत्यम्। तथापि अहम् एतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनाम् अनुभवामि। यतः हि अयम् अन्येभ्यः दुर्बलः। सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव।”

हिन्दी: “मेरे अनेक पुत्र हैं – यह सत्य है। फिर भी मैं इस पुत्र में विशेष आत्मीयता अनुभव करती हूँ। क्योंकि यह अन्य पुत्रों की तुलना में दुर्बल है। सभी संतानों के लिए माँ समान स्नेह रखती है, लेकिन दुर्बल संतान के लिए उसकी कृपा स्वाभाविक रूप से अधिक होती है।”

कथा का समापन

14. सुरभि के वचन सुनकर इन्द्र का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने सुरभि को सांत्वना दी – “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”

हिन्दी: “जाओ पुत्री! सब शुभ हो।”

15. अचिरात् चण्डवातेन मेघरवैः सह प्रवर्षः समजायत। लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषकः हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहम् अगात्।

हिन्दी: शीघ्र ही तेज़ हवा और बादलों की गर्जना के साथ वर्षा हुई। लोगों के देखते ही देखते हर जगह जल भर गया। किसान अत्यधिक प्रसन्न होकर खेत की जुताई छोड़कर दोनों बैलों को लेकर घर चला गया।

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अंतिम श्लोक

अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।

पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्॥

हिन्दी अनुवाद: माँ सभी संतानों के लिए समान स्नेह रखती है। लेकिन जब पुत्र दुर्बल होता है, तो माँ का हृदय करुणा से भर जाता है।

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