कक्षा 9 संस्कृत पाठ 7: सिकतासेतुः – पूरा पाठ हिंदी अनुवाद सहित
📘 परिचय:
सिकतासेतुः नामक यह पाठ सोमदेव द्वारा रचित कथासरित्सागर के सप्तम अध्याय पर आधारित है। इसमें तपोदत्त नामक एक बालक की कथा है जो तपस्या के बल पर विद्या प्राप्त करना चाहता है। उसके मार्गदर्शन के लिए देवराज इन्द्र पुरुषवेष में आते हैं और बालू से पुल बनाने का प्रयास करते हैं। यह दृश्य एक गहरी शिक्षा देता है कि बिना अध्ययन के विद्या प्राप्त करना असंभव है।
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📜 पूरा संस्कृत पाठ + हिंदी अनुवाद (संक्षिप्त रूप में)
ततः प्रविशति तपस्यारतः तपोदत्तः।
तब तपस्या में लीन तपोदत्त का प्रवेश होता है।
तपोदत्तः – अहमस्मि तपोदत्तः। बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि। तस्मात् सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रैः ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवम्॥
मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी द्वारा क्लेश दिए जाने पर भी मैंने विद्या नहीं सीखी। इसलिए सभी परिवारजनों, मित्रों और संबंधियों द्वारा मेरा तिरस्कार किया गया।
(ऊर्ध्वं निःश्वस्य) हा विधे! किमिदं मया कृतम्? कीदृशी दुर्बुद्धिरासीत्तदा!
(ऊपर साँस छोड़ते हुए) हे विधाता! मैंने यह क्या किया? उस समय मेरी कैसी दुर्बुद्धि थी!
(किञ्चिद् विमृश्य) भवतु, किमेतेन? दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् यदि गृहमुपैति तदपि वरम्।
(कुछ सोचकर) ठीक है, इससे क्या? दिन में रास्ता भटकने वाला यदि शाम तक घर पहुँच जाए तो भी अच्छा है।
एष इदानीं तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्मि।
अब मैं तपस्या के द्वारा विद्या प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हूँ।
(पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं दृष्ट्वा सहासम्) हन्त! नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्! तीव्रप्रवाहायां नद्यां मूढोऽयं सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते।
(एक व्यक्ति को बालू से पुल बनाते देखकर हँसते हुए) अरे! संसार में मूर्खों की कोई कमी नहीं है। यह मूर्ख तेज प्रवाह वाली नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयास कर रहा है।
(साट्टहासं पार्श्वमुपेत्य) भो महाशय! किमिदं विधीयते! अलमलं तव श्रमेण।
(ठहाके लगाकर पास जाकर) हे महाशय! यह क्या कर रहे हैं? व्यर्थ में श्रम मत करो।
पश्य, रामो बबन्ध यं सेतुं शिलाभिर्मकरालये। विदधद् बालुकाभिस्तं यासि त्वमतिरामताम्॥
देखो, राम ने समुद्र में जिस सेतु को शिलाओं से बनाया था, तुम उसे बालू से बना रहे हो! तुम तो राम से भी बढ़कर हो गए।
चिन्तय तावत्। सिकताभिः क्वचित्सेतुः कर्तुं युज्यते?
सोचो तो सही, क्या बालू से कहीं पुल बनाया जा सकता है?
देवराजः – यद् यद् अध्ययनं श्रवणं पठनं विना यदि त्वं विद्यां प्राप्तुं शक्नोषि तदा अहमपि बालुकाभिः सेतुनिर्माणं कर्तुं शक्नोमि।
देवराज – यदि तुम बिना पढ़े, सुने और अध्ययन किए विद्या प्राप्त कर सकते हो, तो मैं भी बालू से पुल बना सकता हूँ।
(तपोदत्तः लज्जितः) अहो! देवराजस्य अभिप्रायं ज्ञात्वा तपोदत्तः विद्याप्राप्तिकामः गुरुकुलं गतवान्।
(तपोदत्त लज्जित होकर) देवराज का उद्देश्य समझकर तपोदत्त विद्या प्राप्ति की इच्छा से गुरुकुल चला गया।
शब्दार्थ तालिका
संस्कृत शब्द | हिंदी अर्थ |
---|---|
तपस्यारतः | तपस्या में लीन |
गर्हितः | तिरस्कृत |
मार्गभ्रान्तः | रास्ता भटका हुआ |
सिकताभिः | बालू से |
सेतुनिर्माणं | पुल निर्माण |
श्रवणं | सुनना |
पठनं | पढ़ना |
व्याकरण विश्लेषण
संधि-विच्छेद:
- तपस्यारतः → तपस्या + रतः
- सेतुनिर्माणं → सेतु + निर्माणं
धातु प्रयोग:
- प्रवृत्तः → √वृत्त् (प्रवृत्त होना)
- ज्ञात्वा → √ज्ञा (जानना) + त्वा प्रत्यय
कारक:
- गुरुकुलं → द्वितीया कारक
- देवराजस्य → षष्ठी कारक
❓परीक्षा उपयोगी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: तपोदत्त ने विद्या क्यों नहीं सीखी थी?
उत्तर: बचपन में पिताजी द्वारा क्लेश दिए जाने पर भी उसने विद्या नहीं सीखी, जिससे उसका तिरस्कार हुआ।
प्रश्न 2: देवराज इन्द्र ने क्या किया और क्यों?
उत्तर: देवराज इन्द्र ने बालू से पुल बनाने का प्रयास किया ताकि तपोदत्त को यह समझाया जा सके कि बिना अध्ययन के विद्या प्राप्त करना असंभव है।
प्रश्न 3: तपोदत्त ने देवराज की बात समझकर क्या किया?
उत्तर: उसने लज्जित होकर गुरुकुल जाकर विद्या प्राप्त करने का निर्णय लिया।

निष्कर्ष:
सिकतासेतुः पाठ छात्रों को यह सिखाता है कि विद्या केवल तपस्या से नहीं, बल्कि अध्ययन, श्रवण और पठन से प्राप्त होती है। यह EaseEdu के लिए एक ऐसा कंटेंट है जो छात्रों की सभी ज़रूरतें पूरी करता है—अनुवाद, शब्दार्थ, व्याकरण और परीक्षा की तैयारी।